कश्ती

एक कश्ती समंदरपे तैरेनेवली,
जहा लेहेरे भेजती वहापे जानेवाली,
कश्तीमें सवारी,
उनके जानोका मोल अनमोल है कश्ती के लिए,
उनके लिये समंदरसे झगडा नाही मोड़ लिया,
उतनी हिम्मत ताकद थी, नहीं थी ये अलग बात थी,
फ़िक्र उन जानो की ज्यादा थी
किनारे लगाना था,
और मुकाबला समुंदर से थोड़ी था,
उन जानो को संभालके मंजिलतक लाना था,
किनारा मिले न मिले... समंदर निगल नहीं पाया ये बड़ी बात थी,
लेकिन कश्ती किनारे ले जाने के काबिल नहीं ये सवारियोकी तकरार थी,
अरे किसको पता था कश्ती एक साथ दो तुफ़ानोसे झगड़ रही थी...